परिचय – वो थकान जो कभी दिखी नहीं, पर हर दिन महसूस होती रही
जब हम छोटे
थे, थक हार कर स्कूल
से आते थे तो माँ
की गोद और उसके हाथ
का खाना जैसे
सारी थकान मिटा
देता था।
पर क्या कभी
आपने सोचा है कि वो
जो दरवाज़े के
बाहर बैठा रहता
था — गले में पसीने से
भीगा तौलिया, कंधे
पर झुका बैग,
और आँखों में
एक अजीब-सी शांति — वो पापा कितनी थकान
लेकर घर लौटते
थे?
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AI Image : |
यह चित्र उस पिता की थकान को दर्शाता है जो हमेशा मुस्कान के पीछे अपने दर्द को छुपा लेते हैं। |
पापा की थकान, वो
है जो कभी हमारे लिए
शब्दों में नहीं
आई,
कभी शिकायत में
नहीं बदली,
और कभी आँखों
से बहकर बाहर
नहीं निकली।
आज की कहानी
उनके लिए है —
जो हर रोज़ एक अदृश्य
जंग लड़ते हैं,
बिना कुछ कहे,
सिर्फ हमारे चेहरे
की मुस्कान के
लिए।
एक सुबह जो सब
बदल गई
1. एक
छोटी सी नींद और
एक बड़ी समझ
मैं 13 साल का
था। सर्दियों की
छुट्टियाँ थीं।
हर रोज़ की तरह मैं
देर से उठने वाला था,
पर उस दिन जाने क्यों
नींद जल्दी खुल
गई।
घड़ी देखी — सुबह
5:20।
खिड़की से बाहर झाँका — धुंधली ठंड
में सब सोया हुआ था।
पर एक हल्की
सी खटपट की आवाज़ आई।
आँखें मलते हुए
मैंने देखा —
पापा उठ चुके थे।
कमरे के कोने
में बैठकर वो
अपने फटे हुए जूतों में
लेस बाँध रहे
थे।
कंधे पर पुराना
सा बैग था —
कहीं से उधड़ा
हुआ, कहीं से सिलवाया गया।
पास में रखी स्टील की
बोतल में वो पानी भर
रहे थे।
सबकुछ इतना चुपचाप
था कि उस ख़ामोशी में एक आवाज़ थी
—
त्याग की, मेहनत की,
और जिम्मेदारी की।
मैंने पूछा —
“इतनी सुबह कहाँ जा
रहे हो पापा?”
पापा ने मुस्कराते
हुए जवाब दिया
—
“काम पे जा रहा
हूँ बेटा। आज थोड़ा
एक्स्ट्रा काम है। महीने
का आखिरी है ना…”
मैंने फिर पूछा
—
“क्यों पापा?”
उन्होंने धीरे से
जवाब दिया —
“तेरा स्कूल बैग फट
गया है ना… नया
लेना है।”
उस वक़्त मेरे
गले में कुछ अटक गया।
मैंने कुछ नहीं
कहा… बस देखा
—
उनके हाथों की
लकीरें जो मेहनत
से झुलस चुकी
थीं।
पैरों की एड़ियाँ
जो सर्द ज़मीन
पर फटी हुई थीं।
2. पापा
की खामोश शामें
शाम को जब
पापा लौटते थे,
उनके चेहरे पर
वही मुस्कान होती
थी।
हमारे लिए समोसे
लाते, कभी चॉकलेट,
कभी बाज़ार से
छोटी-मोटी चीज़ें।
पर उस दिन, मैं दरवाज़े
के पीछे खड़ा
था।
पापा आए…
जूते उतारे…
धीरे-धीरे फर्श
पर बैठे…
और अपने पैरों
को सहलाने लगे।
मैंने ध्यान से
देखा —
पैरों पर छाले थे, जगह-जगह खून
के निशान।
पर कोई आह नहीं…
कोई शिकायत नहीं।
कुछ देर बाद
वो उठे,
माँ से बोले
—
“आज परांठे बनाना, बिट्टू
को पसंद है ना।”
माँ ने कहा
—
“आप थके हो, आराम
कर लो। मैं बना
देती हूँ।”
पापा बोले —
“बिट्टू की मुस्कान थकान
मिटा देती है।”
उसी पल मैं
समझ गया —
जो आदमी हमारे
लिए जीता है,
वो अपने लिए
कुछ भी नहीं माँगता।
3. स्कूल
की एक प्रतियोगिता और
मेरा जवाब
स्कूल में एक
दिन प्रतियोगिता थी
—
"आपके जीवन का आदर्श
कौन है?"
सभी बच्चों ने
अपने-अपने मनपसंद
हीरो चुने —
शाहरुख खान, एम.एस.
धोनी, एलबर्ट आइंस्टीन…
जब मेरी बारी
आई, मैंने सिर्फ
एक नाम लिया
—
"मेरे पापा।"
पूरे हॉल में
सन्नाटा छा गया।
मैंने कहा —
"क्योंकि वो हर दिन
बिना ताज के राजा
हैं।
बिना किसी पद के
महानायक हैं।
बिना बोले सब सहते
हैं, और फिर भी
हर दिन मेरे लिए
लड़ते हैं।
उनकी थकान कभी दिखाई
नहीं देती, पर मैं
हर रोज़ महसूस करता
हूँ।"
उस दिन मैंने
पहली बार खुलकर
रोया —
सभी के सामने।
और पहली बार,
मेरे दोस्तों ने
अपने पापा को फोन किया
और कहा —
"I love you, Papa."
4. एक
शाम, एक चिट्ठी, और
नमी भरी आँखें
बचपन में मैंने
एक चिट्ठी लिखी
थी —
"पापा, आप हीरो हो।"
वो चिट्ठी मैंने
उनकी शर्ट की जेब में
रख दी थी।
वो बात भूल गया।
सालों बाद जब
मैं कॉलेज में
था, माँ ने वो पुरानी
शर्ट निकालते वक़्त
बताया —
"तुम्हारी चिट्ठी अब भी
उनकी जेब में रहती
है।"
मैं हैरान रह
गया।
इतने सालों तक
एक साधारण कागज़
के टुकड़े को
उन्होंने सम्भाल कर
रखा।
माँ ने और
भी कुछ बताया
—
“जब भी वो थकते
हैं, अकेले में बैठते
हैं और वो चिट्ठी
पढ़ते हैं।
कहते हैं — बिट्टू को
अगर मुझ पर गर्व
है, तो मैं और
मेहनत कर सकता हूँ।”
उस दिन मैं
खुद को छोटा महसूस कर
रहा था —
इतना बड़ा प्यार,
और मैंने कभी
गले लगाकर उन्हें
धन्यवाद तक नहीं कहा।
सीख – पापा भी इंसान
होते हैं, सुपरहीरो नहीं
पापा को हमने
हमेशा मजबूत देखा।
हमने उन्हें रोते
हुए नहीं देखा,
कभी हार मानते
नहीं देखा।
पर इसका मतलब
ये नहीं कि वो टूटते
नहीं,
या थकते नहीं।
उनकी चुप्पी ही उनका
त्याग है।
हम सोचते हैं
— पापा कुछ नहीं
कहते,
पर सच्चाई ये
है कि वो सब कुछ
कह जाते हैं
अपनी ख़ामोशी में।
तो अगली बार…
जब पापा थके
हुए लगें,
तो उन्हें गले
लगाइए।
जब वो चाय पी रहे
हों, तो उनके पास बैठिए।
कभी-कभी सिर्फ
साथ होना ही बहुत होता
है।
FAQs – पापा
से जुड़ी आम भावनात्मक
जिज्ञासाएं
1. पापा
अपनी थकान क्यों नहीं
बताते?
क्योंकि वो नहीं चाहते कि
उनकी समस्याएँ हमारे
बचपन पर असर करें। वो
हमें हर बोझ से बचाना
चाहते हैं।
2. क्या
पापा भी प्यार जताते
हैं, बस अलग अंदाज़
में?
बिलकुल। वो हर दिन अपने
छोटे-छोटे कामों
से, फ़िक्र से,
और चुपचाप किए
गए बलिदानों से
अपना प्यार जताते
हैं।
3. पापा
के साथ समय कैसे
बिताएँ?
उनसे बातें कीजिए।
उनका दिन कैसा
था पूछिए। उनके
शौक जानिए। उनके
साथ बैठिए जब
वो टी.वी. देख रहे
हों या चाय पी रहे
हों।
4. पापा
के लिए क्या गिफ्ट
देना सबसे अच्छा रहेगा?
एक ईमानदार धन्यवाद,
एक चिट्ठी, एक
साथ बैठा डिनर
— ये सब उनके लिए सबसे
अनमोल गिफ्ट हैं।
5. कैसे
समझें कि पापा को
भी हमारी ज़रूरत है?
अगर वो चुप हैं, काम
में डूबे हैं,
या देर तक जागते हैं
— तो वो भी चाहते हैं
कि कोई उन्हें
समझे। बस उनके पास बैठना
भी बहुत कुछ
कह देता है।
अब आपकी बारी है
क्या आपकी ज़िंदगी
में भी कोई ऐसी कहानी
है जब आपने अपने पापा
की थकान देखी
लेकिन समझ नहीं
पाए?
👇 कमेंट में
अपनी कहानी ज़रूर
बताइए।
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सा मैसेज लिखिए
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